सोमवार, 22 अक्टूबर 2012

बिहार में अपराध

बिहार सरकार द्वारा अगर कोई ठोस पहल नहीं हुयी तो आने वाले दिनों में  कानून-व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा। क्योंकि जिस हिसाब से बिहार में अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। हत्या, बलात्कार, डकैती, चोरी की घटनाएं दिन-ब-दिन बढ़ रही हैं, ये इस बात का घोतक हैं कि सुशासन अब कुशासन हो गया है । आपराधिक घटनाओं और सर्व प्रथम तो अपराधियों पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी हो गया है। इसका ज्वलंत उदहारण भाई ब्रह्मेश्वर सिंह उर्फ़ बरमेसर मुखिया की हत्या और उसके बाद भाई बर्ह्मेश्वर के समर्थकों द्वारा तीन दिनों तक किया गया उत्पात ।
हत्यायों की अगर बात करें तो पटना जिले में कुछ ही दिनों के अन्तराल में 50  के करीब खून हुए, साथ ही 5 जून को समस्तीपुर में एक मोबाइल व्यापारी की  हत्या, 6 जून को रंगदारी न देने पर गोपालगंज में गंडक नदी पर पुल बनाने वाली कंपनी के २ अधिकारीयों की हत्या और एक को घायल,  जहाँ शाम को पटना में होमगार्ड जवान की हत्या होती है, तो सुबह दरभंगा में एक ASI को गोली मार दी जाती है ,  इसके साथ साथ अररिया में महादलित जमीन घोटाला एक तरफ बिहार सरकार की सबसे बड़ी नाकामी दर्शा रही है वहीँ कुछ ही दिनों में 400 बच्चों की मस्तिष्क ज्वर से मौत सरकार को हर मोर्चे पर विफल साबित करने के लिए काफी है ।  मुजफ्फरपुर में दिन दहाड़े एक व्यक्ति की हत्या को भरी बाज़ार में 50   राउण्ड से ज्यादा गोलिया चलाई जाती है,  दिन दहाड़े पटना में पुलिस की नाक निचे से दो दवा दुकानों से करीब छः लाख रूपये लूट लिए जाते हैं,  क्या ये बिहार में अपराधियों की सामानांतर सरकार का घोतक नहीं है ?   बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के रिश्तेदार और उसके नौकर की पटना में हत्या कर दी जाती है और पुलिस केवल अनुसन्धान में जुटी है.
बिहार में राजनैतिक हत्याये भी एक नई मुकाम पर पहुँच चुकी हैं  इण्डिया टुडे के अनुसार  दो साल से कम समय में 34 मुखिया मौत की भेंट चढ़ चुके हैं. उनके मुताबिक सात मुखिया मोतिहारी, चार बेगूसराय, तीन मुजफ्फरपुर और दो-दो पटना, सीतामढ़ी, औरंगाबाद और मुंगेर में मार दिए गए. सिवान, छपरा, आरा, नालंदा, नवादा, शेखपुरा, जहानाबाद, गोपालगंज, मधुबनी, कटिहार, सहरसा और बांका जिलों में एक-एक मुखिया की हत्या हुई है.
दो घटनाएं तो सिर्फ सितंबर महीने में हुई हैं. नवादा में 6 सितंबर को एक उप-मुखिया दशरथ केवट की हत्या हो गई. इसके बाद 11 सितंबर को वैशाली जिले में सुखी पंचायत के मुखिया शिवमोहन सिंह की मुजफ्फरपुर जिले में गोली मारकर हत्या कर दी गई.

बिहार की इस सुशासनी सरकार में बलात्कारियों की भी पूरी मौज है।  बिहार शरीफ में एक छात्रा से सामुहिक बलात्कार और जलाये जाने की  घटना से  लोग अभी उबरे भी नहीं थे कि एक कांग्रेसी विधायक के आवास पर हुए गैंग रेप से लोग सकते में आ गए ।   आपको बताते चलें कि बिहार की सुशासनी सरकार के मुखिया सुशासन बाबू के गृह जिले नालंदा में जब बलात्कारी अपनी मंशा  में सफल नहीं हुए तो छात्रा को कमरे में बंद कर गैस से जला दिया, इसके पहले भागलपुर के आश्रम में साध्वियां भी अपने आश्रम के लोगों से बलात्कार का शिकार बन चुकी हैं ।   
जहाँ अररिया जिले में एक स्कूल के पास बलात्कार के बाद हत्या कर महिला की लाश फ़ेंक दी गयी वहीँ गया जिले में बलात्कारियों ने एक छात्रा को सरेआम अगवा कर सामूहिक बलात्कार किया और उसे राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर चलती कार से नीचे फ़ेंककर बड़ी आसानी से निकल गए ।  इसके बाद सूबे की राजधानी पटना में नेपाली लड़की को सामूहिक बलात्कार के बाद चलती बस से सरेआम सड़क पर फ़ेंक देना,  महिला शिक्षक की सरेआम बेइज्जती और सीडी कांड ने बिहार के और जिलों की तो दूर,  पटना में भी लड़किया  और महिलाये सुरक्षित नहीं हैं साबित कर दिया है ।  पिछले ३ महीने में ही सामूहिक बलात्कार की करीब करीब २० -२५ घटनाये घट चुकी हैं । आम आवाम यह निर्णय नहीं ले पा रहा है कि इस कथित सुशासनी सरकार में इतने दुशासन कैसे खुला घूम रहे हैं ?  इस सरकार की पुलिस तो सिर्फ औपचारिकता भर करके अपने फर्ज को पूरा हुआ समझ लेती है।  इस पर नितीश कुमार जी कह रहे हैं बिहार बदल रहा है, सचमुच बदल रहा है,  और इस बदलते बिहार का घिनौना सच दिल को दहला देने वाला है। जिस प्रदेश की महिलाओं की इज्जत सरेआम लुटी जा रही हो और अपराधी बेख़ौफ़ घटनाओं को अंजाम देते फिर रहे हों, साथ ही कई संगीन मामलों में कोई तीव्रतम और कठोर कार्यवाही नहीं हो,  वहां के अपराधियों के हौसले तो बुलंद होंगे ही ।  पुलिस की संख्या बल में  कमी ने इस पर सोने पे सुहागे जैसा काम किया है ।
वैसे कहा गया है यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता, अब समझने वाली बात ये है कि बिहार में नारी की पूजा हो नहीं रही तो  देवता कहाँ से बसेंगे ऐसे में दानवों का बिहार कहा जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.



2010 में तो राष्‍ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के अनुसार बिहार मर्डर, मर्डर की कोशिश, अपहरण, दहेज़ के लिए हत्या और डकैती में दुसरे स्थान पर था. जरा रुकिए पहला स्थान भी मिला है बिहार को,  उपद्रव में   !   पुलिस विकास एवं अनुसन्धान ब्यूरो के तीन वर्ष पूर्व यानि जनवरी 2009   के आंकड़ों पर नजर डालें तो बिहार में  स्वीकृत 85 ,531 पुलिस की वजाय वास्तव में  59,999  ही  पुलिस की तैनाती है,  हर एक लाख लोगों की सुरक्षा में मात्र 63 पुलिसकर्मी ही हैं जबकि स्वीकृति 90 पुलिस वालों की है । राज्य में प्रति 100 वर्ग किलोमीटर में तैनात पुलिसकर्मियों की संख्या 64 के करीब है जबकि स्वीकृत 91 पुलिस वालों की है । 2011 की जनगणना के मुताबिक  सिविल पुलिस थाना आज भी 813 है जो प्रति 1,27,681 लोगों पर एक थाना है ।

आप अगर गौर करेंगे तो देखेंगे कि बिहार पुलिस ने अपने वेब साईट पर फ़रवरी २०११ के बाद कोई आंकड़ा ही नहीं डाला है, इससे तो यही लगता है कि सरकार अपनी नाकामियों को छुपा रही, और आंकड़े इतने ज्यादा है कि उसे सामने लाने में डर रही है,  जैसा कि आप सभी जानते हैं कि बिहार सरकार ने खुद कबूल  किया है कि  बिहार में अपराध का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है, ये कबूला तो जरूर है लेकिन उसके निवारण के लिए हमारी सुशासनी सरकार क्या कर रही है ?  भाई ब्रह्मेश्वर की हत्या तो इस बात का सबूत है कि बिहार सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया और  अपराधियों में पुलिस और प्रशासन का कोई खौफ भी नहीं है. 
निश्चित रूप ये सभी घटनाएं पुलिस प्रशासन के लिए सिर दर्द बढ़ाने वाली है।  इसलिए ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए तत्काल कड़े कदम उठाने की जरुरत है।
अब अगर बात करें आंकड़ों की तो 2011 में कुल रजिस्टर्ड मामले 1,47,663  वही मार्च 2012 तक में इनकी संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है जो 50000 के करीब पहुँच गयी है,  2001 में 3619 हत्याएं हूई थी  2010 और 2011 में इस संख्या में कमी जरूर आई  जो क्रमशः 3362 और 3198  रही (जिसमे 2011 में मात्र 773 मामलों में फाईनल रिपोर्ट पेश की गयी है ),  लेकिन यहीं आंकड़ा  अब मार्च 2012 तक 1125 तक पहुँच गया है।  हत्या  की यही रफ़्तार रही तो दिसम्बर तक ये 4000 के पार पहुँच जाएगा.  इसी प्रकार बलात्कार और उपद्रव  के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि हुयी है जहाँ 2010 में 795 बलात्कार हुए थे वहीँ  2011 में 934 ,  तो मार्च 2012 तक इस की संख्या 331 तक पहुँच गयी है, उसी प्रकार 2010 में  8809 उपद्रव हुए तो 2011 में यह बढ़कर 9768 हो गयी है ।  डकैती और चोरी की घटनाओं में कमी जरूर आई है पर इससे सुशासन सरकार की कालिख धुलती नजर नहीं आ रही है ।

मुख्यमंत्री महोदय को चाहिए कि संसाधनों में वृद्धि करते हुए समाज को अपराध-मुक्त, भय मुक्त  कराने  के लिए कोई ठोस कदम उठाएं क्योंकि जिस प्रकार से इनमे वृद्धि हुयी है, और अगर इसपर अभी अंकुश नहीं लगा तो आने वाले समय में यह एक विकराल समस्या बन जाएगी और तब इस पर लगाम कसना काफी मुश्किल होगा। वैसे ही हमारे बिहार में समस्यायों की कोई कमी नहीं है ।

स्रोत :  आर टी आई, एन आर सी बी, इ टी वी बिहार और  पुलिस विकास एवं अनुसन्धान ब्यूरो



बिहार में सिविल, जिला और रिज़र्व पुलिस की स्वीकृत और वास्तविक संख्या बल 1.1.2009  
  पद  / post
स्वीकृत/ sanctioned
वास्तविक संख्या/ actual
खाली / vacancy
पद  / post
स्वीकृत/ sanctioned
वास्तविक संख्या/ actual
खाली / vacancy
DGP
9
17
0
Inspector
724
586
138
IGP
17
15
2
S. I.
8713
4919
3794
DIG
26
18
8
A.S.I.
4785
4166
619
SSP/SP
73
59
14
H.Constable
8756
4681
4075
ADD. SP
3
0
3
Constable
43804
32651
11153
ASP/ DY.SP
314
212
102




स्रोत :  पुलिस विकास एवं अनुसन्धान ब्यूरो


आर टी आई से मंगाई गयी रिपोर्ट के अनुसार 2011 आंकड़े इस प्रकार हैं : 
मर्डर 
डकैती
रॉबरी
फरेब
चोरी
उपद्रव
फिरौती के लिए अपहरण
बलात्कार
सड़क डकैती 
बैंक डकैती 
बैंक रॉबरी 
बच्चों का अपहरण
3198
556
1381
3776
16292
9768
57
934
194
11
8
1821

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भारत में जमीन-जायदाद से जुड़ी हत्याएं
वर्ष                  बिहार                 कुल
2010                916                   3,097
2009                836                   2,935
2008                825                   2,852
2007                599                   2,856
2006                567                   2,682
2005                671                   2,810
आंकड़े राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के अनुसार